Soch kay hai (Hindi)
By: Krishnamurti, J.
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153.42/Kri (Browse shelf) | 1 | Available | 22741 |
1981 में जनिन, स्विटूज़रलैंड तथा एम्स्टर्डम में आयोजित इन वार्ताओं में कृष्पामूतिं मनुष्य मन की सरिकास्वद्धता को कभयूटर की प्रोग्रामिंग की मानिंद बताते हैं । परिवार, सामाजिक परिवेश तथा शिक्षा के परिणति के तीर पर मस्तिष्क की यह प्रोग्राम्मिऱ ही व्यक्ति का तादाल्य किसी धर्म-विशेष से करवाती है, या उसे नास्तिक बनाती है, इसी की वजह से व्यक्ति राजनीतिक पक्षसमर्थन के विभाजनों में से किसी एक को अपनाता है । हर व्यक्ति अपने विशिष्ट नियोजन, प्रौग्रामकै मुताबिक सोचता है, हर कोई अपने खास तरह के विचार के जाल में फंसा है, हर कोई सोच के फंदे में है । सोचने-विचारने से अपनी समस्याएं हल हो जाएगी ऐसा मनुष्य का विश्वास रहा हैं परंतु वास्तविकता यह है कि विचार पहले तो स्वयं समस्याएं पैदा करता हे, और फिर अपनी ही पैदा की गई समस्याओँ को हल करने में उलझ जाता है ।........
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