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Shiksha Ke Sath Prayog (Hindi)

By: Mehrotra, Mamta.
Publisher: New Delhi Prabhat Prakashan 2016Description: 136p. 9x6.ISBN: 9789351867197.DDC classification: 370.15/ Summary: प्रयास करें कि आपका स्वभाव ऐसा हो कि आप जीवन के सफर में किसी बच्चे को जिज्ञासु बनाएँ। उसे मुक्त छोड़ें, ताकि वह इस गूढ़ विश्व में जीवन के रहस्यों को अपनी विवेचना से खुद सुलझाए। इस पुस्तक का अंतर्निहित विषय यही है। इस पुस्तक में पन्ना-दर-पन्ना आगे बढ़ते जाना वाकई करामाती अनुभव है। यह उत्साहजनक अनुभूति है कि कैसे हर पन्ना एक बच्चे को अपनी पहचान बचाने की संकल्पना बताते हुए जागरूक करता है। साथ ही बताता है कि कैसे आधुनिक शिक्षा प्रक्रिया में हमारे विद्यालय उसे निर्दयता से कुचलते जा रहे हैं। छात्र एक मानव संसाधन है और उसे पढ़ाते समय यह बात अच्छी तरह गाँठ बाँधकर रख लेनी चाहिए। छात्रों को विशेष लाभ दिलाने के लिए यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि दो छात्र एक तरह के कभी नहीं हो सकते। विद्यालय और शिक्षक किसी भी स्तर पर शिक्षा देने की अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते। उन्होंने विद्यादान का प्रण लिया है और यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे अंत तक यह देखें कि इसे अच्छी तरह निभाया गया अथवा नहीं। शिक्षा के साथ प्रयोग करते हुए इस क्षेत्र में क्या करणीय है और क्या अकरणीय है तथा विद्यार्थी का हित किसमें है, यह बताने का सहज प्रयास इस पुस्तक में किया गया है। शिक्षा के स्तर के उन्नयन के व्यावहारिक कदम बताती पठनीय पुस्तक।
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Book Book Hindi Book 370.15/Mah (Browse shelf) Available 23617
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प्रयास करें कि आपका स्वभाव ऐसा हो कि आप जीवन के सफर में किसी बच्चे को जिज्ञासु बनाएँ। उसे मुक्त छोड़ें, ताकि वह इस गूढ़ विश्व में जीवन के रहस्यों को अपनी विवेचना से खुद सुलझाए। इस पुस्तक का अंतर्निहित विषय यही है। इस पुस्तक में पन्ना-दर-पन्ना आगे बढ़ते जाना वाकई करामाती अनुभव है। यह उत्साहजनक अनुभूति है कि कैसे हर पन्ना एक बच्चे को अपनी पहचान बचाने की संकल्पना बताते हुए जागरूक करता है। साथ ही बताता है कि कैसे आधुनिक शिक्षा प्रक्रिया में हमारे विद्यालय उसे निर्दयता से कुचलते जा रहे हैं। छात्र एक मानव संसाधन है और उसे पढ़ाते समय यह बात अच्छी तरह गाँठ बाँधकर रख लेनी चाहिए। छात्रों को विशेष लाभ दिलाने के लिए यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि दो छात्र एक तरह के कभी नहीं हो सकते। विद्यालय और शिक्षक किसी भी स्तर पर शिक्षा देने की अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते। उन्होंने विद्यादान का प्रण लिया है और यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे अंत तक यह देखें कि इसे अच्छी तरह निभाया गया अथवा नहीं। शिक्षा के साथ प्रयोग करते हुए इस क्षेत्र में क्या करणीय है और क्या अकरणीय है तथा विद्यार्थी का हित किसमें है, यह बताने का सहज प्रयास इस पुस्तक में किया गया है। शिक्षा के स्तर के उन्नयन के व्यावहारिक कदम बताती पठनीय पुस्तक।

Hin

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