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Maan (Hindi)

By: Rana, Munawwar.
Contributor(s): Rana, Tabrej (Co.).
Publisher: New Delhi Vani Prakashan 2015Edition: 6th ed.Description: 94p. 9.5x6.ISBN: 9788181437136.DDC classification: 891.431/ Summary: आज मैं मुनव्वर भाई की किताब ‘पीपल छाँव’ के नीचे बैठकर अपनी माँ को याद करता रहा। ये है उनके क़लम का जादू, जिसको मैं ही नहीं सारी दुनिया जानती है। - पद्मश्री गोपाल दास ‘नीरज’ ऐसा नहीं है कि इससे पहले उर्दू शायरी में ‘माँ’ का हवाला नहीं था, ज़रूर था, लेकिन मुनव्वर राना ने अपनी ग़ज़लों में इस तरह बरता है कि वो उनकी इन्फरादियत (अनुपमता) और माँ के लिए उनकी हक़ीक़ी (वास्तविक) मुहब्बत का दर्पण है। - पद्मश्री बेकल उत्साही राना की ग़ज़लों में बेशतर अशआर तजरुबों और वारदातों पर उस अव्वलीन रद्दे अमल (Initial Response) की मिसाल हैं जिसे बहुत दिनों से ग़ज़ल की शायरी ने नज़र अंदाज़ कर रखा है और ‘माँ’ के मौजू (topic) पर उसके शेर एक ज़माने तक नायाब (दुर्लभ) हीरों की तरह जगमगाते रहेंगे। - वाली आसी मुनव्वर राना ने ख़ूबसूरत और निहायत मुनासिब अल्फ़ाज़ के इस्तेमाल के जरिये माँ की तस्वीरों के ऐसे रूप दिखाये हैं जो सच्चे और हक़ीक़ी हैं लेकिन जब तक हमने उन्हें शेरों के फ़्रेम में नहीं देखा, हालाँकि वो सब हमारे तजरुबात में आये होंगे, लेकिन हम उनसे ला इल्म रहे। - वारिस अल्वी
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Book Book Hindi Book 891.431/ Ran/Ran (Browse shelf) Available 23602
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आज मैं मुनव्वर भाई की किताब ‘पीपल छाँव’ के नीचे बैठकर अपनी माँ को याद करता रहा। ये है उनके क़लम का जादू, जिसको मैं ही नहीं सारी दुनिया जानती है। - पद्मश्री गोपाल दास ‘नीरज’ ऐसा नहीं है कि इससे पहले उर्दू शायरी में ‘माँ’ का हवाला नहीं था, ज़रूर था, लेकिन मुनव्वर राना ने अपनी ग़ज़लों में इस तरह बरता है कि वो उनकी इन्फरादियत (अनुपमता) और माँ के लिए उनकी हक़ीक़ी (वास्तविक) मुहब्बत का दर्पण है। - पद्मश्री बेकल उत्साही राना की ग़ज़लों में बेशतर अशआर तजरुबों और वारदातों पर उस अव्वलीन रद्दे अमल (Initial Response) की मिसाल हैं जिसे बहुत दिनों से ग़ज़ल की शायरी ने नज़र अंदाज़ कर रखा है और ‘माँ’ के मौजू (topic) पर उसके शेर एक ज़माने तक नायाब (दुर्लभ) हीरों की तरह जगमगाते रहेंगे। - वाली आसी मुनव्वर राना ने ख़ूबसूरत और निहायत मुनासिब अल्फ़ाज़ के इस्तेमाल के जरिये माँ की तस्वीरों के ऐसे रूप दिखाये हैं जो सच्चे और हक़ीक़ी हैं लेकिन जब तक हमने उन्हें शेरों के फ़्रेम में नहीं देखा, हालाँकि वो सब हमारे तजरुबात में आये होंगे, लेकिन हम उनसे ला इल्म रहे। - वारिस अल्वी

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