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Amar Shahid Ashfak Ullakhan Khan

By: Chaturvedi, Banarsidas.
Material type: materialTypeLabelBookPublisher: New Delhi Rajkamal Prakashan 2018Description: 172p. pb 21*13.ISBN: 9789387462809.Subject(s): Amar Shahid Ashfak Ullakhan KhanDDC classification: 923.6 Summary: जब तुम दुनिया में आओगे तो मेरी कहानी सुनोगे और मेरी तस्वीर देखोगे। मेरी इस तहरीर को मेरे दिमाग़ का असर न समझना। मैं बिलकुल सही दिमाग़ का हूँ और अक़्ल ठीक काम कर रही है। मेरा मक़सद महज़ बच्चों के लिए लिखना यूँ है कि वह अपने फ़राइज़ महसूस करें और मेरी याद ताज़ा करें। उक्त बातें क्रान्तिकारी शहीद अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ने अपने भतीजों के लिए, फाँसी से ठीक पूर्व लिखी थीं। उनका मक़सद देश की नौजवान पीढ़ी को उनके दायित्वों और प्रतिबद्धताओं से वाक़िफ़ कराना था। देशभक्ति से सराबोर ऐसे क्रान्तिकारी आज विस्मृत कर दिए गए हैं। क्रान्तिकारियों और स्वतंत्रता-सेनानियों के हमदर्द बनारसीदास चतुर्वेदी द्वारा सम्पादित यह पुस्तक अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के क्रान्तिकारी जीवन और उनके काव्य-संसार से पाठक का परिचय कराती है। दरअसल उनकी रचनाओं और जीवन के मुक़ाम के रास्ते दो नहीं एक रहे हैं। पुस्तक में अशफ़ाक़ उल्ला का बचपन, सरफ़रोशी की तमन्नावाले जवानी के दिन, अंग्रेज़ों के प्रति मुखर विद्रोह और अन्ततः देश की ख़ातिर फाँसी के तख़्ते पर चढ़ाए जाने तक की सारी बातें सिलसिलेवार दर्ज हैं। किताब का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है - अशफ़ाक़ के पत्र, उनके सन्देश, उनकी ग़ज़लें, शायरी तथा उनके लेख जिनमें वह अपनी ‘ख़ानदानी हालत’, ‘बचपन और तालीमी तरबियत’, ‘स्कूल और मायूस ज़िन्दगी’ और ‘जज़्बाते-इत्तिहादी इस्लामी’ का यथार्थ वर्णन करते हैं। रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला को जानना देश की गंगा-जमना तहज़ीब की विरासत और उनके रग-रेशे में प्रवाहित देशभक्ति और मित्रभाव को भी जानना है। बनारसीदास चतुर्वेदी के अलावा रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, मन्मथनाथ गुप्त, जोगेशचंद्र चटर्जी और रियासत उल्ला ख़ाँ के लेख भी अशफ़ाक़ की वतनपरस्ती और ईमान की सच्ची बानगी पेश करते हैं। निस्सन्देह, यह पुस्तक अशफ़ाक़ को नए सिरे से देखने और समझने में मददगार साबित होती है।
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Book Book Hindi Book 923.6 Kha /Cha (Browse shelf) Available Hindi Book 24817 |
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जब तुम दुनिया में आओगे तो मेरी कहानी सुनोगे और मेरी तस्वीर देखोगे। मेरी इस तहरीर को मेरे दिमाग़ का असर न समझना। मैं बिलकुल सही दिमाग़ का हूँ और अक़्ल ठीक काम कर रही है। मेरा मक़सद महज़ बच्चों के लिए लिखना यूँ है कि वह अपने फ़राइज़ महसूस करें और मेरी याद ताज़ा करें। उक्त बातें क्रान्तिकारी शहीद अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ने अपने भतीजों के लिए, फाँसी से ठीक पूर्व लिखी थीं। उनका मक़सद देश की नौजवान पीढ़ी को उनके दायित्वों और प्रतिबद्धताओं से वाक़िफ़ कराना था। देशभक्ति से सराबोर ऐसे क्रान्तिकारी आज विस्मृत कर दिए गए हैं। क्रान्तिकारियों और स्वतंत्रता-सेनानियों के हमदर्द बनारसीदास चतुर्वेदी द्वारा सम्पादित यह पुस्तक अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के क्रान्तिकारी जीवन और उनके काव्य-संसार से पाठक का परिचय कराती है। दरअसल उनकी रचनाओं और जीवन के मुक़ाम के रास्ते दो नहीं एक रहे हैं। पुस्तक में अशफ़ाक़ उल्ला का बचपन, सरफ़रोशी की तमन्नावाले जवानी के दिन, अंग्रेज़ों के प्रति मुखर विद्रोह और अन्ततः देश की ख़ातिर फाँसी के तख़्ते पर चढ़ाए जाने तक की सारी बातें सिलसिलेवार दर्ज हैं। किताब का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है - अशफ़ाक़ के पत्र, उनके सन्देश, उनकी ग़ज़लें, शायरी तथा उनके लेख जिनमें वह अपनी ‘ख़ानदानी हालत’, ‘बचपन और तालीमी तरबियत’, ‘स्कूल और मायूस ज़िन्दगी’ और ‘जज़्बाते-इत्तिहादी इस्लामी’ का यथार्थ वर्णन करते हैं। रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला को जानना देश की गंगा-जमना तहज़ीब की विरासत और उनके रग-रेशे में प्रवाहित देशभक्ति और मित्रभाव को भी जानना है। बनारसीदास चतुर्वेदी के अलावा रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, मन्मथनाथ गुप्त, जोगेशचंद्र चटर्जी और रियासत उल्ला ख़ाँ के लेख भी अशफ़ाक़ की वतनपरस्ती और ईमान की सच्ची बानगी पेश करते हैं। निस्सन्देह, यह पुस्तक अशफ़ाक़ को नए सिरे से देखने और समझने में मददगार साबित होती है।

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