000 | nam a22 7a 4500 | ||
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999 |
_c87328 _d87328 |
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008 | 230323b xxu||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789386628459 | ||
082 | _a575/Gad | ||
100 | _aGadgil, Madhav ( माधव गाडगीळ) | ||
245 | _aUtkranti : ek mahanatya | ||
245 | _aउत्क्रांती : एक महानाट्य | ||
260 |
_aPune : _bRajhansa Prakashan, _c2020. |
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300 |
_a268p. _bhb _c7x10 |
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520 | _aपृथ्वीच्या रंगमंचावर रंगले आहे एक महानाट्य. हे नाटक सुरू झाले साडेचार अब्ज वर्षांपूर्वी,.त्यावेळी झाली पृथ्वीची उत्पत्ती. या पृथ्वीतलावर चेतनसृष्टीने पदार्पण केले चार अब्ज वर्षांपूर्वी. सतत वाढता विस्कळितपणा हा जडसृष्टीचा गुणधर्म. मात्र जीवसृष्टीने या प्रवृत्तीवर मात केली, जीवसृष्टीचा हा तरू सतत वर्धिष्णू राहिला, विविधांगांनी बहरत राहिला. या महानाट्यातील आगळीवेगळी सजीव पात्रे म्हणजे रेणूंचे अत्यंत सुसंघटित सहकारी संघ. या पात्रांनी पृथ्वीच्या रंगमंचावर साकारलेले उत्क्रांती: एक महानाट्य. डबल डेमी, मोठा आकार, संपूर्ण आर्ट पेपर, अनेक रंगीत छायाचित्रे. | ||
650 | _aEvolution | ||
942 | _cBK |